तेरी चिंगारी 'लौ" बन
सुलग रही है जिस्म में
कतरा-कतरा पिघल रहा
कतरा-कतरा जल रहा
किसी को नहीं है
इस दर्द से वास्ता
मुझे भी अब कहाँ रहा?
मैं तो बस देखता रह गया
पहले दिल पिघला
फिर दिमाग, जिस्म के बाद
अब तो लहू भी बह गया
पर कमबख्त यह लौ है कि
बुझती नहीं
और कमबख्त तू है कि
समझती ही नहीं
बहुत ही अच्छी....
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