Friday, April 25, 2014

कुछ ऐसी बात कर...


रूह को छू जाए
कुछ ऐसी बात कर
आ घड़ी भर रूक
फिर ना जाने की बात कर
तोड़ दे हर बांध
आ अब बहने की बात कर
बहुत हो गया दूर-दूर
अब पास आने की बात कर
पत्थर की तरह कठोर क्यों
पिघलने की बात कर
तेरे बिन अंधेरी है जिंदगी
बस अब रोशनी की बात कर
आ गये हैं मझधार में
अब डूबने की ही बात कर
हर बार जीत ही जाती है
इस बार कुछ हारने की बात कर
चल दिए हैं सहरा में तो
पानी की नहीं, प्यास की बात कर
बहुत हुई खुशियों की खोज
अब कुछ खो देने की बात कर
तुझ में मैं, मुझमें तू
कुछ ऐसे ही, एक होने की बात कर
क्यों दो दुनी चार, चार दुनी आठ
कभी तो शून्य की बात कर
जिंदा रहने के भ्रम के लिए ही सही
कुछ देर तो मौत की भी बात कर
हर वक्त का चलना ही क्यों
कुछ देर एक-दूजे को देखने की बात कर
मुट्ठी भर जो वक्त है
इसमें पूरी उम्र जीने की बात कर
रूह को छू जाए
कुछ ऐसी बात कर
कुछ ऐसी बात कर...

 

Wednesday, April 2, 2014

दिल


कभी खुद का जिस्म
भी चुभता है मुझे
कभी चाहता है खुद को
अपने हाल पर छोड़ देना
कभी लाद देना चाहता है
जंजीरें हजारों
तो कभी डूब जाना चाहता है
शून्य में
कभी इस तरह घुल जाना चाहता है सूर्य में
कि हर कतरे से रोशनी फूट पड़े
कभी अंधेरे, घोर अंधेरे में
चाहता है गुम हो जाना
कभी बियाबान में भटक कर
जार-जार चाहता है हो जाना
कभी किसी दरिया में
मर जाना चाहता है प्यासा
कभी किसी सहरा में
देखना चाहता है अपनी मौत
ये दिल जो है ना कमबख्त
हर दर्द चाहता है झेल जाना
पर नहीं चाहता है
कभी नहीं चाहता है
खुद पर एक खरोंच तक आना