Thursday, September 15, 2011

एक जोड़ा आँखों का!



अकेला होता हूँ
पर नहीं होता
कार चलाते हुए
पास की सीट होती है भरी
एक जोड़ा आँखों का
हर वक्त देख रहा होता है
खाना खाते, सोते
जागते, हँसते, बोलते
हर वक्त
कई बार मुझे देखकर
मुस्कुराता है
गलतियों पर चेताता भी है
लड़ना तो जैसे उसका शगल हो
हाँ, कभी प्यार भी जताता है
अक्सर मैं सोचता हूँ
इसके सिवा उसे कुछ काम नहीं?
पता नहीं कैसे वह पढ़ भी लेता है
मेरे दिल की बात
तब वह लड़ता नहीं
बस थोड़ा-सा 'छलक" जाता है
वाकई में...
साथ के लिए जरूरी नहीं
किसी का 'साथ" होना

Saturday, September 10, 2011

मम्मा!



वो कहती है
मुझे भी 'मम्मा"
समेट लेता हूँ
दामन में उसे
तब पिता का अहसास
कहीं नहीं होता
और धड़क उठता है
'माँ" का दिल
चंद पल ही सही
हो जाती है मेरी कोख हरी



 

Thursday, September 8, 2011

कुछ तो है बदला!



निकर पहन दौड़ा
करता था उन गलियों में
आज भी वे वहीं हैं
वैसी ही, जैसी मैं छोड़ गया था
आज भी गोधूली नजर आती है
हाँ, गाँयें थोड़ी कम हो गई
मंदिर से वैसी ही घंटियों की आवाज
सुबह, शाम सुनाई दी
ओटले, गोबर लीपे घर
चूल्हे पर बनी रोटियाँ
बाड़ा, नीम के वे पेड़
यहाँ तक की गौरेया
गिलहरियाँ, बैल, भैंस
बिजली की लुकाछिपी
जल्दी सोती शाम
और भोर से पहले उठती सुबह
सब, सब वैसा ही
जैसा बरसों-बरस पहले छोड़ गया था
लगा, मानों पूरे गाँव पर बस
यादों की धूल जमा हो गई हो
जरा सा फटका मारा और
लगा मैं निकर में फिर दौड़ने
पर जब धुंध छटी तो पाया
बस, इंसान 'बदल" गए हैं



 

Wednesday, September 7, 2011

देख, क्या कहते हैं ये इशारे!



आज खिला-खिला है सूरज
जरूर खिलकर हँसेगी वो
सुबह से झर रहा है आसमाँ
प्यार के दो बोल बरसाएगी वो
सारा दिन लिहाफ ओढ़े है
गुनगुनी अंगीठी नजर आएगी वो
किस कदर चहक रही है चिड़िया
आज जरूर फुदकती मिलेगी वो
महकी, कुछ बहकी सी है हवा
जरूर मदहोशी में होगी वो
आज मौसम छेड़ रहा सुरीली तान
निश्चित ही दिल के तार छेड़ेगी वो
ये झूमते क्यों नजर आ रहे हैं पेड़
मस्ती के आलम में होगी वो
हर दिन, हर पल, हर जगह
मैं खोजता हूँ तुझको
और उन संकेतों को
जो नजर आते हैं
और ले जाते हैं
मुझे तेरे और करीब


 

Monday, September 5, 2011

ना समझी!





वो ना समझे
दर्द की गहराई
वर्ना वे भी डूब जाते
या हमारी जान ले जाते