Tuesday, October 25, 2011

मेरी दिवाली!



लोग जला रहे हैं दीप
लक्ष्मी के सामने, तुलसी के पास
पंडेरी के किनारे, ताक पर
हर कोने को कर रहे हैं रोशन
रसोइयों से उठी मीठी, भीनी-भीनी खुशबू
गलियों के रास्ते फैल रही है चहूँ ओर
फूलझड़ियाँ, अनार, जमीन चकरी
लड़ रही हैं अमावस के अंधियारे से
उत्साहित बच्चे, बड़ों के बालमन
डूबे हैं मस्ती के आलम में
इंसान, घर, जानवर
यहाँ तक की प्रकृति भी
नजर आ रही है नए परिधान में
मैं भी डूबा हूँ इस जश्न में
फर्क सिर्फ इतना है
मेरी मनती है हर रोज दिवाली
शुक्रिया
मेरी जिंदगी रोशन करने के लिए

1 comment:

  1. bahut khub ...jivant diwali chitran aur manobhavon ka samavesh sarthak sabdavali......

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