Sunday, October 23, 2011

तेरे प्यार का जहर!



क्यों फना हो जाती है जिंदगी
किसी एक आह पर
क्यों आँखें पथराया करती है
किसी एक राह पर
क्यों जीने की ख्वाहिश नहीं बचती
किसी के यूँ चले जाने पर
क्यों खुद को ही भूल जाता हूँ
किसी एक चाह पर
क्यों नशा छा जाता है
किसी एक मुस्कान पर
क्यों वजूद ही मिट जाता है
कोई हाथ थाम कर
न जिंदा हूँ, न गिना जाता हूँ मुर्दों में
सच है, बड़ा जालिम है तेरे प्यार का जहर

1 comment:

  1. भावपूर्ण रचना....बहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...

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