Tuesday, August 22, 2017

छूट जाना


छूट गया है वो
जो बसता था कभी
बहता रहता था हर वक्त
सोते-जागते 
मुझमें ही गुनगुने पानी सा
छूट गया है वो
जो धड़कता था कभी
मुझमें दिला-सा
छूट गया है कहीं वो
जो जगाये रखता था
मुझे विचारों सा
छूट गया है वो
आता-जाता था
मुझमें सांसों सा
छूट गया है वो
जो कभी भेदता था
मुझे नजरों सा
छूअन, स्पंदन, धड़कन
रक्त, अहसास, आस
ये हाड़, ये मांस
सब छूट गया 

Thursday, June 15, 2017

वो चाहती हैं



वो चाहती हैं
खुशियों का झरना
सदा बहता रहे दामन से।
हर बच्चा
चैन से सुस्ता ले
उनकी बरगद सी छांह में।
मक्खन से हाथों का स्पर्श
छीन ले सारे रंजो-गम
चहेतों के जीवन से।
गोद में जो आए कोई
भूल जाए फिर
हर दर्द जो छिपा हो दिल में।

वो चाहती हैं
उनकी पनीली आँखों में
कोई झांक कर खंगाल ले
वो सारे रहस्य
कैसे स्पष्ट हार पर भी
धैर्य ओढ़ा जाता है।
कैसे बुरे वक्त को
उम्मीद की एक किरण के सहारे टाला जाता है।
कैसे बड़े गुनाह पर भी
माफी का इनाम दिया जाता है।
कैसे गिरने पर भी
हौंसलों से सहारा दिया जाता है।
कैसे बच्चों की फरमाइश को
खुद की इच्छा का नाम दिया जाता है।
कैसे दिल में उमड़े सैलाब को
आंखों तक भी न आने दिया जाता है।
कैसे हंसी-हंसी में
जिंदगी का रहस्य समझाया जाता है।
कैसे अपने फैसलों पर
पहाड़ समान अडिग हुआ जाता है।
कैसे बहुओं और बेटियों को
फैसलों का अधिकार दिया जाता है।
वो चाहती हैं
लेकिन, कहती कुछ नहीं।
कभी नहीं कहा कुछ
सब समझा गया।
जिसने जो समझा
अपने-अपने तई मान लिया।
पूरी तरह कभी कुछ नहीं समझा गया
वैसा, जैसा वो चाहती हैं।
शायद पूरी तरह कभी
समझा भी ना जा सके
भला ईश्वर को कोई
पूरी तरह समझ सका है।