जब भी तन्हाई घेरती है मुझे
पाता हूं खुद के करीब खुद को
परत दर परत
गहरे और गहरे
धंस जाता हूं खुद में
अंधेरा, घुप अंधेरा
रोशनी का निशान नहीं
कितनी छटपटाहट
जैसे गला घोंट रहा हूं अपना ही
आकंठ तक डूबी प्यास
हर तरफ बेचैनी, अशांति
शायद इतना ही भद्दा
रहता है मनुष्य
या फिर अपना ही सच
जाना है मैंने
पर, हूं खुशकिस्मत
जब भी चूभता हूं
मैं खुद की नजरों में
तेरी आंखों की पनाह
ले लेती है आगोश में
वाह, कितना अद्भुत है
अहसास प्रेम का
कहते हैं
वक्त के हाथ होती है
जीवन की डोर
जब धागा टूटा
साथ छूट गया
पर, उसका क्या
जो है संग तेरे
उसके हिस्से तो है
बस चंद लम्हे
उस वक्त में
जी लिया तो जी लिया
जी भर खुशियों को
पी लिया तो पी लिया
मैं हूं मोहताज तेरा
तूने जब-जब नजरें फेरी
मानों मेरे जीवन की डोर टूटी
वक्त की क्या मजाल
जो डोर चलाए, जीवन खींचे
कुछ तो है जो खो रहा है
झड़ रहा है, खिर रहा है
हर पल, हर दिन
बढ़ रहा है तो बस
अनुभव, समझ, उम्र
और मैं
देख रहा हूं खुद में
बहुत कुछ घटते
कुछ-कुछ बढ़ते
बचपन, जो कभी मेरा था
वो दोस्त, जो बुनते थे
संग ख्वाब मेरे
वो गांव, जो बसा था
दिल में मेरे
खेत, नदी, फसलें, रिश्ते
सब, सब
काश, लौटा दे कोई
यदि न कर सके इतना तो
जो संग हैं मेरे
अब न छूटे कभी
नहीं चाहिए तर्जुबा
जिंदगी में मेरी
बस, वो घुले रहे
यूं ही मुझमें
जो बसे हैं हर पल रूह में मेरी