छोड़ने की बात वो कहते रहे
हम पकड़ने पर जोर देते रहे
हम निरे बेवकूफ थे
बेवकूफ ही रहे
वो समझदारी से
ये बात समझते रहे
वो चलाते रहे
हम चलते रहे
कब समझेगें हम
पता नहीं
वो दिल को हमारे
खिलौना समझ खेलते रहे
हम देखते रहे
यूं ही धीरे-धीरे टूटते रहे
ऐसे ही एक दिन
हम कबाड़ में फेंके जाते रहे
हम निरे बेवकूफ थे
बेवकूफ ही रहे
हां, सच तो यह भी है
छोड़कर हमें
उनसे हम छूटे नहीं
अपनी ही समझदारी पर
कईं बार वो रोते रहे
हम निरे बेवकूफ थे
बेवकूफ ही रहे