प्यास
Tuesday, October 11, 2011
पहाड़-सा वक्त!
गुजरता जाता है वक्त
मुट्ठी में पकड़ी 'रेत" के मानिंद
अंगुलियों में समेट लाता हूँ
सारे जिस्म की ताकत
पर ये है कि
रूकता ही नहीं
मायूस, हताश बस
देखता रह जाता हूँ इसे रिसते
...और जब तू नहीं होती
ये वक्त 'पहाड़" बन जाता है
2 comments:
विभूति"
October 11, 2011 at 7:41 PM
वक़्त की बखूबी पंक्तियों में समेटा है आप ने..... बहुत ही सुन्दर....
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रेखा
October 12, 2011 at 3:32 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
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वक़्त की बखूबी पंक्तियों में समेटा है आप ने..... बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ....
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