Tuesday, August 22, 2017

छूट जाना


छूट गया है वो
जो बसता था कभी
बहता रहता था हर वक्त
सोते-जागते 
मुझमें ही गुनगुने पानी सा
छूट गया है वो
जो धड़कता था कभी
मुझमें दिला-सा
छूट गया है कहीं वो
जो जगाये रखता था
मुझे विचारों सा
छूट गया है वो
आता-जाता था
मुझमें सांसों सा
छूट गया है वो
जो कभी भेदता था
मुझे नजरों सा
छूअन, स्पंदन, धड़कन
रक्त, अहसास, आस
ये हाड़, ये मांस
सब छूट गया