Saturday, April 30, 2011

अक्स...



वो पूछते हैं, तुम कैसे हो
उन्हे कैसे बताएँ, हम हैं ही कहाँ?
क्या वो इतना भी नहीं जानते
जब से मिले हैं वो
मिटा चुके हैं अपना वजूद
उल्टे हम तो हर वक्त
उन्हीं में खोजते हैं खुद को
उनकी आँखों में खंगालते हैं
अपने अक्स को
उन पर छाता है जब बसंत
तो खिल जाते हैं
उनके पतझड़ में
हम ठूँठ नजर आते हैं
खुश चेहरे को देखते ही
हो जाते हैं तरबतर
और पलकों पर देख एक बूंद
हम आंसू बन जाते हैं
फिर भी तुम पूछना चाहते हो
कि हम कैसे हैं?
तो बस नजर भर तुम
देख लिया करो आईने को!





 

Friday, April 29, 2011

चेहरे



मैं जब मुड़कर देखता हूँ
कुछ पदचिन्ह नजर आते हैं
बड़े-बड़े और स्पष्ट
तो कुछ थोड़े पहचाने से
जब गौर करता हूँ इन पर
अनगिनत चेहरे तेजी से उभरते हैं
कुछ स्पष्ट तो कुछ ध्ाुंध्ाले से
दूर तलक जाता है यादों का कारवाँ
एक फिल्म सी चलने लगती है
खुशियाँ, हँसी, मजाक
झूठ, फरेब, नासमझी
नादानियाँ, बचपना
अल्हड़पन, दोस्ती
दुश्मनी सब-कुछ
कुछ मेरा तो कुछ उन चेहरों का
जब मैं वापस लौटता हूँ
यादों के सफर से
साथ में और अपने हाथ में
खींच लाया होता हूँ
कुछ प्यारे और मुस्कुराते चेहरे
अब भी मैं सफर पर हूँ
फिर छूटेंगे कुछ पदचिन्ह
और कुछ चेहरे होंगे मेरे साथ!




 

Monday, April 25, 2011

प्यार!




उसकी आँखों में
पलते थे खुबसूरत ख्वाब
जहाँ फूलों, बगीचों
पहाड़ों, झरनों
जंगल से बातें हुआ करती थी
उसके हाथों में
रहती थी एक किताब
जिसे पढ़कर मिला करता था
नए ख्वाबों के लिए जरूरी उर्वर
उसके घेरे में
बैठा करते थे कई दोस्त
जहाँ मस्ती, मौज
शैतानियों, चुहल
गपशप में बीता करता था सारा दिन
उसके कानों में
हरदम घुला रहता था मध्ाुर संगीत
जिसे सुन बादल
हवा, चाँद, तारे
सूरज सबको
दामन में समेट लिया करती थी
कितनी खुश थी वह
...पर इन दिनों
छूट गई हैं किताबें
वे ख्वाब, दोस्त
और संगीत
सुना है वह 'प्यार" में है
अब करती रहती है
बस, खुद से ही बातें









 

Saturday, April 23, 2011

बिन तेरे...



बिन तेरे तिल-तिल
खिसकती है जिंदगी
बिन तेरे कतरा-कतरा
जी रहा हूँ ये जिंदगी
तू क्यूँ नहीं समझती
मानती और जानती,
अहमियत अपनी
और अपने होने की
पता है तुझे...
जब तू होती है मेरे साथ
वो पल हो जाते हैं खास
कतरा-कतरा ही सही
मैं जी लेना चाहता हूँ तुझे
बता देना चाहता हूँ
मेरे दिल का सूनापन
वह वीरानी
जो घात लगाए बैठी होती है
निगल जाती है मुझे
पूरा का पूरा
बिन तेरे...
यहाँ-वहाँ भटकता हूँ मैं
खुद को अंदर तक टटोलता भी हूँ
एक अनंत, स्याह खोह होती है
अंदर भी और बाहर भी
तब परछाई भी छोड़ देती है साथ
बिन तेरे...
क्या तू नहीं जानती
टुकड़ों-टुकड़ों की यह मुलाकात
दर्द दे जाती है बेशुमार
एक शूल सा चुभता है सीने में
तब दिल के गहरे घाव पर
खुद ही लगाता हूँ मरहम
पर अब दवा भी कैसे करे असर
शूल पर शूल, अनगिनत और अनंत
दर्द के साथ देख बह रही है दवा
बिन तेरे...
हाँ, मुझे याद है
समझाया था तूने
क्यूँ न कम कर दें मुलाकातें
तब हर बार का यह दर्द
कभी-कभी उठा करेगा
तब मेरे पास कोई जवाब नहीं था
होता भी कहाँ
तूने दिल के इलाज में
मेरा सीना जो चीर दिया था
मैं जान गया था
तू जी सकती है बिन मेरे
पर क्या करूँ मैं कमबख्त
नहीं जी सकता बिन तेरे...









 

Sunday, April 17, 2011

सुलग उठी प्यास!

बहुत तेज प्यास
कैसे भी हो मैं पा जाऊँ उसे
जब मैंने बताया हाल-ए-दिल
जवाब आया- प्यास में बड़ा है मजा
एक तड़प होती है इसमें
दिल से हर वक्त तेज दर्द का रिसाव
आत्मा का एक सिरा हमारे पास
तो दूसरा सिरा कुछ खिंचता सा
हर वक्त सबकुछ छोड़ने की चाह
पर कुछ भी छूटता है कहाँ
डूबे रहो ना इस प्यास के सोते में
मैं भी तो डूबी हूँ आकंठ
जवाब सुन- मैं मुस्कुराया, ध्ाीरे से वह भी
मैंने भी जान लिया और उसने भी
यहाँ भी वही प्यास और वहाँ भी
पर यह जानते ही प्यास सुलग उठी ।











 

Thursday, April 14, 2011

नयनों की भाषा...

क्या कर रहे हो
कुछ भी तो नहीं
तुम मुझसे दूर रहो
पास आने देती हो कहाँ
क्यों छू रहे हो
कब किया ऐसा
कोई देख लेगा
आज तो देख लेने दो
तुम समझते क्यों नहीं
तुम ने समझाया है कहाँ
छोड़ों ना मुझे जाना है
पकड़ा ही कहाँ है
देखो साथ चाय भी पी चुके
दो ही मिनट तो लगे पीने में
अब बस बहुत हुआ
हद है! अभी तो मुलाकात हुई
तुम नहीं मानोगे
प्यार से समझाओगी तो मान जाऊँगा
प्लीज, अब जाने दो
ठीक है, कल मिलने का वादा करो
पहले हाथ तो छोड़ो
पहले वादा करो
ठीक है, बाबा... वादा
अब आय लव यू कहो
देख रहे हैं सब
तो जल्दी से कहो
ठीक है... आय लव यू!
यूँ ही रोज चलती रही नयनों से बातें
जुबाँ पर आने में बीत गए बरसों




 

Tuesday, April 12, 2011

दस्तक!

खुशी हर जगह देती है दस्तक
पर आहट की पहचान कहाँ आसान
हर बार होता है इसका भेष नया
और नया होता है इसका अंदाज
मैं बड़ा खुशनसीब हूँ
हर बार-लगातार पहचान लेता हूँ इसे
फिर चाहे यह आए दबे पाँव
या फिर आए अपना रूप बदल
कई बार नजरों से पी लेता हूँ
कई बार छूअन से जी लेता हूँ
एक खुशबू भी है
जो कर देती है सारे दिन का काम
खुली जुल्फों से भी मिलता है
पूर सुकून आराम
अमावस सी खामोशी हो या
पूनम सी बिखरी खिलखिलाहट
लड़ाई के बाद मुँह फुलाई नाराजी हो या
ढेर सारी फिजूल सी चहचहाहट
दिन-दिन भर, टुकड़ों-टुकड़ों में
वह मासूम यूँ ही करती चली जाती है
मुझे खुशियों से तरबतर।


 

Saturday, April 9, 2011

दिल से दिल तक...

यूँ ही चलते हुए
कार में अचानक ही
एक हाथ आता है
ऊँगलियों से लिपट जाता है
फिर बड़े ही हौले से
ध्ामनियों से होता हुआ
दिल पर थाप देता है
बढ़ जाती है दिल की मुश्किल
आपे से बाहर हो जाती है ध्ाड़कनें
फिर बड़े ही हौले से
थाम लेता है हाथ दिल को
दिल तो संभल जाता है
पर बढ़ जाती है हाथ की मुश्किल
वह टटोलने लगता है अपनी नब्ज
नब्ज बता देती है सारा हाल
एक दिल संभालने में
कर चुका है अपना दिल बेहाल
तभी उसे महसूस होती है
अपने दिल पर ऊँगलियों की थाप
जो कभी से सहला रही हैं
दिल की बढ़ी ध्ाड़कनों को
यूँ ही चलते हुए
कार में अचानक ही


 

Tuesday, April 5, 2011

तन्हाई बोली




तन्हाई होती है बड़ी जालिम

जब कभी मौका देखती है
मेरे पास आ पसरती है
खोल लेती है वो किताब
जिसमें दर्ज है दर्द बेहिसाब
फिर हम निकल पड़ते हैं
दर्द के सफर पर
वो मुझे वहाँ ले जाती है
जहाँ कभी बिता था बचपन
नजर आने लगता है
बड़ा सा मकान
आंगन से झाँकता खुला आसमान
भाइयों की मस्ती
पापा की झूठी सख्ती
दादी का दुलार
माँ की प्यार भरी फटकार
बचपन में भीगा ही था कि
खींच लाती है लड़कपन में
जहाँ होती है दोस्तों की टोली
मीठी सी आशिकी अबोली
नई-नई जवानी का खुमार
हर दिन होली-दिवाली सा त्यौहार
अभी रंंगा ही था मस्तियों के रंग में
तभी फेंक दिया जीवन की जंग में
बड़ी सख्त दिल हो तन्हाई बोली
क्यूँ हर बार की जाए यादों की जुगाली
छोड़ मुझे और जुट जा आज में
लेकिन ये मत भूल कल फिर आऊँगी
फिर तुझे 'आज" के लिए सताऊँगी
बचपन, लड़कपन, जवानी और
'आज" की कहानी फिर दोहराऊँगी।





 

गुम है चाँद!

गहरी स्याह रात
तन्हा-तन्हा सा आकाश
गुम है कहीं चाँद
अंदर स्याह विरानी
तन्हा-तन्हा सा दिल
गुम है कहीं चाँद
थमी हुई है पुरवाई
पेड़ों को भी है खबर
गुम है कहीं चाँद
थमी सी है जिंदगी
साँसों को भी है खबर
गुम है कहीं चाँद
दरिया भी खोज रहा अक्स
चोटियों को भी है तलाश
गुम है कहीं चाँद
नजरों को भी है खोज
रूह को भी यही तलाश
गुम है कहीं चाँद