Friday, April 29, 2011

चेहरे



मैं जब मुड़कर देखता हूँ
कुछ पदचिन्ह नजर आते हैं
बड़े-बड़े और स्पष्ट
तो कुछ थोड़े पहचाने से
जब गौर करता हूँ इन पर
अनगिनत चेहरे तेजी से उभरते हैं
कुछ स्पष्ट तो कुछ ध्ाुंध्ाले से
दूर तलक जाता है यादों का कारवाँ
एक फिल्म सी चलने लगती है
खुशियाँ, हँसी, मजाक
झूठ, फरेब, नासमझी
नादानियाँ, बचपना
अल्हड़पन, दोस्ती
दुश्मनी सब-कुछ
कुछ मेरा तो कुछ उन चेहरों का
जब मैं वापस लौटता हूँ
यादों के सफर से
साथ में और अपने हाथ में
खींच लाया होता हूँ
कुछ प्यारे और मुस्कुराते चेहरे
अब भी मैं सफर पर हूँ
फिर छूटेंगे कुछ पदचिन्ह
और कुछ चेहरे होंगे मेरे साथ!




 

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