Tuesday, April 5, 2011

तन्हाई बोली




तन्हाई होती है बड़ी जालिम

जब कभी मौका देखती है
मेरे पास आ पसरती है
खोल लेती है वो किताब
जिसमें दर्ज है दर्द बेहिसाब
फिर हम निकल पड़ते हैं
दर्द के सफर पर
वो मुझे वहाँ ले जाती है
जहाँ कभी बिता था बचपन
नजर आने लगता है
बड़ा सा मकान
आंगन से झाँकता खुला आसमान
भाइयों की मस्ती
पापा की झूठी सख्ती
दादी का दुलार
माँ की प्यार भरी फटकार
बचपन में भीगा ही था कि
खींच लाती है लड़कपन में
जहाँ होती है दोस्तों की टोली
मीठी सी आशिकी अबोली
नई-नई जवानी का खुमार
हर दिन होली-दिवाली सा त्यौहार
अभी रंंगा ही था मस्तियों के रंग में
तभी फेंक दिया जीवन की जंग में
बड़ी सख्त दिल हो तन्हाई बोली
क्यूँ हर बार की जाए यादों की जुगाली
छोड़ मुझे और जुट जा आज में
लेकिन ये मत भूल कल फिर आऊँगी
फिर तुझे 'आज" के लिए सताऊँगी
बचपन, लड़कपन, जवानी और
'आज" की कहानी फिर दोहराऊँगी।





 

6 comments:

  1. कल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. एह्साओं को खूबसूरती से लिखा है

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  3. स्मृतियों के झोंके सी सुन्दर रचना...
    सादर बधाई...

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  4. ek sthitpragya vichar aur marmik kalewar bahut achhi hai

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  5. भावपूर्ण अभिवयक्ति....

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