Saturday, April 9, 2011

दिल से दिल तक...

यूँ ही चलते हुए
कार में अचानक ही
एक हाथ आता है
ऊँगलियों से लिपट जाता है
फिर बड़े ही हौले से
ध्ामनियों से होता हुआ
दिल पर थाप देता है
बढ़ जाती है दिल की मुश्किल
आपे से बाहर हो जाती है ध्ाड़कनें
फिर बड़े ही हौले से
थाम लेता है हाथ दिल को
दिल तो संभल जाता है
पर बढ़ जाती है हाथ की मुश्किल
वह टटोलने लगता है अपनी नब्ज
नब्ज बता देती है सारा हाल
एक दिल संभालने में
कर चुका है अपना दिल बेहाल
तभी उसे महसूस होती है
अपने दिल पर ऊँगलियों की थाप
जो कभी से सहला रही हैं
दिल की बढ़ी ध्ाड़कनों को
यूँ ही चलते हुए
कार में अचानक ही


 

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