ख्वाब कईं बसाए आंखों में
दबाए बेटियां कांख में
वह चलती रही
थकी भी होंगी
हुए होंगे कदम विचलित भी
यकीनन, कईं कोशिशें हुई
रोकने की उसे
पर न वो रुकी
न कभी डगी
बढ़ती रही
हकीकत होते रहे
उन जागती आंखों के ख्वाब
उसी ने बनाया
गुड़िया को खालिस सोना
और, सोना देखते ही देखते
गीतांजली बना नजर आया
ख्वाब तो अब भी पल रहे हैं
उन आंखों में
बस इंतजार है फिर
एक कोपल के 'युगंधर" बनने का
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