Tuesday, May 13, 2014

चुटकी भर वक्त


हर वक्त पकड़ता हूं
वक्त को
इधर, छूटी जाती है
जिंदगी हाथ से
सबकुछ साधने की हवस में
हो रही है खाक
हस्ती मेरी
ऐ-वक्त आखिर
कब देगा चुटकी भर वक्त मुझे
ताकि घड़ी भर देख सकूं
थोड़ा मरहम लगा सकूं
तूने दिए हैं जो घाव मुझे
क्यूं नहीं तू रुक जाता दो पल को
मेरे साथ बातें करता
जिंदगी का तू भी इंतजार करता
फिर बाहों में जकड़ उसे
हमकदम मेरा होता
 

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