प्यास
Wednesday, May 7, 2014
टूटन...
बुझ रहा है
थम रहा है
मंद-मंद
ठंडा हो रहा है
जल रहा है
बह रहा है
मंद-मंद
खाक हो रहा है
काश, कुछ हो ऐसा
वो बचा रहे
कांच के बर्तन में भी
हर प्रहार सहता रहे
यदि चटके भी तो ऐसा
कण-कण में बिखरकर
ये दिल, वैसा ही दिल रहे
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