प्यास
Friday, August 5, 2011
मुखौटा!
चढ़ा लिए हैं
भाँति-भाँति के लेप
फिर उसे ही चेहरा
मान, जी रहा है इंसान
हर थपेड़े से वह खुद को
नहीं, आवरण को बचाता
फिर अपना-पराया भूल
ताउम्र मुखौटे से करता है प्यार
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