Tuesday, August 2, 2011

उम्मीद...



देख रहा हूँ मैं
थामे अपना दिल
उम्मीद है
घनघोर घटाएँ छाएँगी
प्यासे तन, मन को
तरबतर कर जाएँगी
जो रोपा है बीज
वह अंकुरित कर जाएगी
सूखे पड़ी हैं जो धाराएँ
कलकल की धुन सुनाएँगी
बंजर होती धरती
को फिर हरा कर जाएगी
सूखे पेड़ों पर भी
कोपलें खिल आएँगी
उन पर घोसलें बना
चिड़ियाएँ मस्ती से चहचहाएँगी
और सावनी झूलों में
यौवनाएँ प्रेमगीत गाएँगी
वादा किया है तूने
अमृत बन बरसेगी
इस बार ना करेगी नाउम्मीद
बस बरसेगी, और झूम-झूम बरसेगी





 

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