Friday, May 27, 2011

उसका साथ!

गहरे, और गहरे
जा ध्ाँसा दिल की गहराईयों में
पता नहीं क्यूँ आज
सन्नााटा, अंध्ोरा था वहाँ
कहाँ गई वह चकाचौंध्ा
वह रोशनी, उजलापन?
यहाँ आया भी वर्षों बाद था
क्या कुछ नहीं बदला
सच, झूट में
प्यार, सुविध्ाा में
ईमान, फरेब में
खुबसूरती, दिलफरेबी में
साफगोई, चापलूसी में
स्वाभिमान, घमंड में
मेहनत, भ्रष्टाचार में
सदाचार, अनाचार में
फिर भी, फिर भी
उजाड़, विरान दिल में
दूर कुछ हल्की रोशनी नजर आई
मैं बदहवास हो दौड़ा उस ओर
देखा राख के ढेर में कोई
बैठी है चकमक पत्थर ले
सुलगाना चाहती है लौ
वह थक चुकी है
पर हारी नहीं
मुझे देख वह आ चिपटी
मेरी आँखों में झाँक बोली
चिंता ना कर- मैं हूँ ना साथ!








 

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