Friday, May 13, 2011

ईमान का खून!



कई चेहरे देखे, कई जुबाँ सुनी
ईमान का जिक्र हर जगह पाया
जब निकला इसकी खोज में
मैं कहाँ-कहाँ नहीं भटका
अपने अंदर भी टटोला
जंगल, रेगिस्तान
गाँव, शहर सब छान मारे
निराश, हताश जब लौट रहा था
दूर आसमान में मंडराते दिखे कई गिद्ध
और नजरें दौड़ाई
भीषण गर्मी में बबूल के नीचे
एक महिला नजर आई
बिखरे बाल, कपड़े तार-तार
पास ही आँसूओं से तरबतर
पड़ा था एक कंकाल
मुझे देख वह बदहवास सी
आ चिपटी मुझसे
वह अब चीखे जा रही थी
तुम लौटा दो- मेरा ईमान
एक झटका लगा
जिसकी खोज में दर-दर भटका
क्या वह अब दुनिया में नहीं रहा
इसकी हत्या हुई या अपनी मौत मरा
कुछ सूझ नहीं रहा था
महिला चीखें जा रही थी
कंकाल देख लग रहा था
यह भूख, प्यास से खुद ही मरा
मुझे भी रुलाई फूट पड़ी
मैं भी विलाप करने लगा
पर मैं देखता हूँ
दोनों के हाथ रंगे थे
इतने में दूर एक हुजूम नजर आया
उनके कपड़े और हाथ दोनों रंगे थे!








 

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