Saturday, December 3, 2011

साथ तेरा...

कई रातें गुजारी है हमने
यूँ जागते
मानों फिर ऐसी रात
लौट कर ना आएगी
कई-कई बार बित जाते हैं
घंटों यूँ बातों में
मानों फिर कभी
हम ना मिल पाएँगे
कई बार नापी है ये सड़कें
खुली आँखों से यूँ ख्वाब देखते
मानो फिर ऐसे सफर पर
हम ना निकलेंगे
सफर दर सफर
मंजिल दर मंजिल
उम्र के हर पड़ाव पर
ऐसे ही जीना है मुझे
संग तेरे
कि, अब साथ तेरा
आखिरी हो या
यह बन जाए पहला
 

No comments:

Post a Comment