Tuesday, December 6, 2011

शर्त!

वह अपनी शर्तों पर
जिंदगी जीता था कभी
अब शर्तों के भरोसे
है जिंदगी उसकी
बहुत समझाया था
काबू में रखना
नामुराद दिल को
दे गया ना यह
तिल-तिल जीने की सजा
माना की प्यार में
कोई शर्त नहीं होती
पर कमबख्त पहली शर्त
ही यह है, कुछ भी करो
मगर इश्क में कोई शर्त न रखो
हम नहीं जानते
सही और गलत
हम तो शर्तिया कहते हैं
'दीवानगी" में हार जाओगे
हर-इक शर्त तुम
 

2 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति....

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