Friday, December 16, 2011

कहाँ से लाऊँ वो शब्द?

नहीं जानती है तू
कहाँ तक फैला है तेरा वजूद
फूलों की खुशबूओं
दिल तक छूते हर इक स्पर्श
गोधूली से नहाती साँझ
चौके से उठती भीनी सी लहर
धुँध में डूबी सुबह
मस्ज़िद की पहली अज़ान
मंदिरों की संध्या आरती
पहाड़ी नद के नाद
चीड़ के जंगल में झाँकती किरण
बूँदों में भीगे इंद्रधनुष
बच्चों की किलकारी
प्रकृति की हर चित्रकारी
पंछियों के कोरस
'यह कायनात है"
इस अहसास तक में
और, मेरे 'होने" के वजूद में
बस है तू ही तू
मैं बताना चाहता हूँ हर बार
पर क्या करूँ
कमबख्त शब्द ही नहीं मिल पाते
 

2 comments:

  1. पर क्या करूँ
    कमबख्त शब्द ही नहीं मिल पाते...
    2 good...

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  2. पर क्या करूँ
    कमबख्त शब्द ही नहीं मिल पाते.....बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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