Friday, December 2, 2011

'उम्मीद"

'उम्मीद" भी होती है
कितनी नामाकूल
हर बार झाँसा देकर
ये जब्त कर लेंती हैं संवेदनाएँ
लगता है बस अब
ठीक हो जाएगा सबकुछ
कुशल राजनेता की तरह
देती है सुहावने आश्वासन
हर विपरीत परिस्थिति के लिए
होता है इसके पास दिवास्वप्न
कईं बार तो इसके भरोसे
हो जाती है उम्र तमाम
मौत के मुहाने पर भी
यह बचने की दे देती है उम्मीद
अच्छा ही है तुझे नजर
नहीं आता किसे देना है दिलासा
यह भी अच्छा है कि
झूठा ही सही जगाती तो है आशा
सोचता हूँ
तू न होती तो
कभी असंभव, संभव न हो पाता
तूफानों से लड़ना न आता
असफलता पर न छटपटाता
यूँ जीतता भी न जाता
हर बार सुनहरे ख्वाब न सजाता
मत पूछ ऐ-फरेबी
तेरे बिना तो मैं
जीना ही भूल जाता

4 comments:

  1. sach... iske bina to hum jeena hi bhul jate...
    ye hai, to aas bandhi hai, k aaj yaan kal, yaan fir shayad parson, vo ummeed puri hogi... :)
    wonderfully written, Sir..!!

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  2. उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  3. behtreen rachna bhaavabhivaykti....

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  4. मत पूछ ऐ-फरेबी
    तेरे बिना तो मैं
    जीना ही भूल जाता
    ............बढ़ियां....

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