Thursday, November 24, 2011

मैं कारीगर...

डरता हूँ मैं खुद से
इसलिए खुद को बाँधता हूँ
मेरे बंधन हैं इतने मजबूत
तोड़ना चाहता हूँ
पर कहाँ तोड़ पाता हूँ?
जब खड़ी कर रहा था
दीवारें खुद के लिए
तब डरता था सेंधमारी से
अब चाहकर भी
एक किल तक नहीं गाड़ पाता
कई बार कोशिश की गई
मेरी दिवारों में सेंध की
हर बार जीत गया मैं कारीगर
पर अब घुटता है
मेरा भी दम यहाँ
अफसोस
बाहर आवाज तक नहीं जाती

3 comments:

  1. कई बार कोशिश की गई
    मेरी दिवारों में सेंध की
    हर बार जीत गया मैं कारीगर
    पर अब घुटता है
    मेरा भी दम यहाँ
    अफसोस
    बाहर आवाज तक नहीं जाती
    वाह बहुत खूब लिखा है आपने समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत हैhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_24.html

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