Tuesday, November 15, 2011

ख्वाब सुधारती मेरी बेटी!


कल ही की तो बात है
मैं सुनता था दादी से
कहानी खरगोश 'माँ" की
बुनता था अपना संसार
जहाँ बात होती खुशियों की
पंछियों की, परियों की
और रंग-बिरंगी तितलियों की
कल ही की तो बात है
जब मैं बस्ता उठाए जाता था स्कूल
होती थी दोस्तों संग मस्ती
गढ़ने होते थे होमवर्क न करने पर बहाने
रिजल्ट की चिंता, टिचर की फटकार
खेलों में बार-बार तकरार
हर दूसरी लड़की से प्यार
कल ही की तो बात है
टोली पिया करती थी समोसे संग कट चाय
सूनी नजर आती थी कॉलेज की क्लास
डिस्को जाते, रोज नई उम्मीदों के पंख लगाते
दिन को रात, रात को दिन करने का
हौंसला सीने में लिए घूमते
हर पिक्चर के हीरो में खुद का अक्स देखते
दुनिया के हर असंभव को ठेंगे पर रखते
कल ही की तो बात है...
वाकई बहुत तेज रफ्तार है जिंदगी
इन दिनों मेरी बेटी झाँकती है आँखों में
मुस्कुराती है, मानो कह रही हो
तेरे ख्वाबों में बहुत गुंजाईश है सुधार की!






 

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर भावों के साथ ही सार्थक रचना

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