Wednesday, November 2, 2011

कैसे बयाँ करूँ?



हर वक्त खोजता हूँ
वो शब्द
जो कह सके तुझे
मेरे दिल की सदा
जो बयाँ करें
मेरी तड़प, बैचेनी, दीवानगी
प्यास, जलन, घुटन, बेचारगी
जो हर वक्त उकलती रहती है
सिर्फ तेरे लिए
हाँ, जुबाँ कहती तो है
कुछ घिसे-पीटे से शब्द
तू समझती भी है
पर, तेरा समझना, मेरा समझाना
दोनों अधूरे हैं शायद
क्योंकि न तो मौन, न ही शब्दों में
बयाँ हो सकती है मेरे दिल की भाषा!

 

3 comments:

  1. kabhi nahi bayaan ho paegi..... mere prem ki paribhasha...

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  2. क्योंकि न तो मौन, न ही शब्दों में
    बयाँ हो सकती है मेरे दिल की भाषा!बहुत ही अच्छी....

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