Monday, March 14, 2011

मेरे लिए...

तुम मुस्कुराते हुए अच्छे लगते हो
मेरे लिए हर वक्त मुस्कुराया करो
मैं कुछ भी करूँ, कुछ भी कहूँ
मैं बुरा बोलूँ या अच्छा कहूँ
तुमसे हर वक्त तकरार करूँ
तुम मुँह फुलाये अच्छे नहीं लगते हो
मेरे लिए तुम मुझसे यूँ रूठा न करो
मेरी उलझनों को क्यूँ नहीं समझते
उन्हे बढ़ने के लिए क्यूँ छोड़ देते
तुम दूर-दूर अच्छे नहीं लगते हो
मेरे लिए तुम मुझसे ही उलझा करो
कौन नहीं चाहता तुम्हारे संग भटकना
हाथों में हाथ लिए यूँ देर तक घूमना
तुम अकेले-अकेले अच्छे नहीं लगते हो
मेरे लिए तुम मुझे भी संग ले लिया करो
देखो रोज सिमट रही है जिंदगी
तुम्हे पड़ेगी ये दूरी बहुत महंगी
तुम यूँ जाया होते अच्छे नहीं लगते हो
मेरे लिए जिंदगी में मुझे भी शामिल किया करो
मेरे लिए तुम हर वक्त मुस्कुराया करो।












 

3 comments:

  1. this one is beautiful...
    i really wanna dedicate this one to somebody...
    hope kabhi vo din aaye ki main use ye khule-aam dedicate kar paaun...:)

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  2. तुम अच्छी कविता कर लेते हो...सुन्दर है..तुम्हारे साथ...ये है कौन लेकिन...

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  3. this one is very nice.........

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