Monday, March 14, 2011

अरमानों का कत्लेआम!

खुश थी इक माँ, बेटा आएगा
पति भी काम से जल्द लौटेगा
बेटी-दामाद से घर महकेगा
बहू ने कर ली है सारी तैयारी
रात भर से लगी है बेचारी
नाती-पोतों की भी रहेगी किलकारी
किसे पता था, कौन जानता
किसी देश में यूँ प्रलय आएगा
भावनाओं, तमन्नााओं और
अरमानों का यूँ कत्लेआम हो जाएगा
मैं इतना बड़ा तो नहीं कि
दूँ ईश्वर के निर्णय को चुनौती
पर हे ईश्वर! इतना बता दूँ कि
तेरी माँ भी फूट-फूट रोयी होगी।







 

1 comment:

  1. हे ईश्वर! इतना बता दूँ कि तेरी माँ भी फूट-फूट रोयी होगी...
    हे ईश्वर, ये रचना क्यों, जब विध्वंस इतना जरूरी था...

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