Sunday, January 22, 2012

बुनी है एक राह!

कई ख्वाबों की रहगुजर के बाद
एक राह बुनी है मैंने
वह तुझ तक ही तो जाती है
बस, तुझ तक ही
अभी चलना शुरू ही किया है
आकर मिली है कुछ तितलियाँ भी
जो बात कर रही है फूलों की
पंछियों ने भी आकर की है
तारीफ उस हँसीं मंजर की
मछलियाँ भी झील से झाँक
कह रही है खुशामदीद
कहीं से कोयल ने
छेड़ी है इकतार
जुगनूओं ने टाँकी है
मदहोश रोशनी की लंबी कतार
मस्ती के इस आलम में
देख आ पहुँचा मैं तेरे आँगन में
छोड़ दो, दूर हटो
अब ना फेंकों मुझे फिर बियाबान में
जहाँ बात न हो तेरी-मेरी
बिखरी हो दुनियादारी
खुलेआम ख्वाबों का कर कत्लेआम
की जा रही हो सौदागरी
कैसे, जी पाऊँगा मैं?
तू ही बता!
जो राह बुनी है
वह, बस तुझ तक ही तो आती है!
 

2 comments:

  1. जुगनूओं ने टाँकी है
    मदहोश रोशनी की लंबी कतार...
    शानदार....

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  2. bas... ek hi raah buni hai maine,,,, aur vo tujh tak hi to aati hai..
    aWESOME...!!!

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