Wednesday, June 1, 2011

तेरी 'छूअन"



इक सरसरी सी दौड़ती है
सारी इंद्रियाँ उस ओर
देखने लगती हैं
पूरा जिस्म सुनने लगता है
ध्ाक-ध्ाक की अद्भुत रिदम
आँखों में उतर आता है
पूरी बोतल का नशा
जुबाँ, बे-जुबाँ हो
चख लेना चाहती है स्वाद
रोम-रोम लेने लगता है साँस
मन भी चिपट जाता है उस ओर
दिमाग छोड़ देता है तब साथ
सिर्फ होती है जज्बातों की बात
इक प्यास व्याकुल हो
पी जाना चाहती है वह अहसास
बस, कुछ ऐसी ही है तेरी 'छूअन"

 

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