Friday, April 27, 2012

प्यास!



प्यास वो कतई नहीं
जो पानी से ही बुझ जाए
तो फिर, क्या है?
कमबख्त, तेरे मिलने से
दहकती है
ना मिलने से
और भी भड़कती है
मिलो तो, ना मिलो तो
हर, हर परिस्थिति में
वो, वैसी ही है जिंदा
और मैं?
अनंत तक
भटकते रहने के लिए अभिशप्त
डरता हूँ, और चाहता भी
यह ऐसी ही, जैसी
पहले थी, अभी है
बनी रहे
मैं जानता हूँ
यही, हाँ यही तो है प्यास
पर शायद ही
समझा पाऊँ तुझे
क्या है प्यास!
 

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