Friday, March 23, 2012

आई लव यू दाता...

एक बुजुर्ग की आँखों में
अकेलेपन की बूँदें छलकी देख
दिल बैठ-सा गया
कैसे भरूँ उनका वो सूना कोना
जहाँ कभी रहा करते थे 'अपने"
जिन्हें, जालिम वक्त ने
एक-एक कर चुरा लिया
जिसने ताउम्र का वचन दिया था कभी
वह अब यादों में ही निभा रही है साथ
टीस उठती है कहीं भीतर
आखिर क्यों मानते हैं हम
बेटियों को पराया धन
और, बेटा
जब दुनिया निन्यानवे के फेर में है
तो वह 'बेचारा" क्या करे?
भाई-भतिजों को कैसे दोष दिया जाए
सबकी अपनी दुनिया, अपने बंधन
उनके लिए
शायद कुछ नहीं कर सकता मैं
अनायास ही, मोबाइल पर
एक नंबर डायल हो आया
हैलो सुनते ही मैंने कहा
आई लव यू दाता (पापा)

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