Wednesday, April 2, 2014

दिल


कभी खुद का जिस्म
भी चुभता है मुझे
कभी चाहता है खुद को
अपने हाल पर छोड़ देना
कभी लाद देना चाहता है
जंजीरें हजारों
तो कभी डूब जाना चाहता है
शून्य में
कभी इस तरह घुल जाना चाहता है सूर्य में
कि हर कतरे से रोशनी फूट पड़े
कभी अंधेरे, घोर अंधेरे में
चाहता है गुम हो जाना
कभी बियाबान में भटक कर
जार-जार चाहता है हो जाना
कभी किसी दरिया में
मर जाना चाहता है प्यासा
कभी किसी सहरा में
देखना चाहता है अपनी मौत
ये दिल जो है ना कमबख्त
हर दर्द चाहता है झेल जाना
पर नहीं चाहता है
कभी नहीं चाहता है
खुद पर एक खरोंच तक आना
 

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