कुछ तो है जो खो रहा है
झड़ रहा है, खिर रहा है
हर पल, हर दिन
बढ़ रहा है तो बस
अनुभव, समझ, उम्र
और मैं
देख रहा हूं खुद में
बहुत कुछ घटते
कुछ-कुछ बढ़ते
बचपन, जो कभी मेरा था
वो दोस्त, जो बुनते थे
संग ख्वाब मेरे
वो गांव, जो बसा था
दिल में मेरे
खेत, नदी, फसलें, रिश्ते
सब, सब
काश, लौटा दे कोई
यदि न कर सके इतना तो
जो संग हैं मेरे
अब न छूटे कभी
नहीं चाहिए तर्जुबा
जिंदगी में मेरी
बस, वो घुले रहे
यूं ही मुझमें
जो बसे हैं हर पल रूह में मेरी
sahi hai......................kuch bhi na chute
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