जब भी तन्हाई घेरती है मुझे
पाता हूं खुद के करीब खुद को
परत दर परत
गहरे और गहरे
धंस जाता हूं खुद में
अंधेरा, घुप अंधेरा
रोशनी का निशान नहीं
कितनी छटपटाहट
जैसे गला घोंट रहा हूं अपना ही
आकंठ तक डूबी प्यास
हर तरफ बेचैनी, अशांति
शायद इतना ही भद्दा
रहता है मनुष्य
या फिर अपना ही सच
जाना है मैंने
पर, हूं खुशकिस्मत
जब भी चूभता हूं
मैं खुद की नजरों में
तेरी आंखों की पनाह
ले लेती है आगोश में
वाह, कितना अद्भुत है
अहसास प्रेम का
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