भ्रमों को हो ही जाने दो दूर
देखूं तो असल चेहरा अपना
परत-दर-परत
प्याज के मानिंद
उतरे जब नकाब
सिवाय आंसू के
हाथ बस रिता रहा
लौट जाना चाहता हूं
फिर अपनी खोलों में
कि मजबूरी हो गई है
चूभता है शूल-सा
अब ये नंगा बदन मुझे
वक्त लगा जानने में ये
भ्रमों से खुबसूरत है
जिंदगी मेरी
क्यों कोई भला झेलेगा
फिजूल में मुझे
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