Saturday, February 25, 2012

चाह...

जानता हूँ
सारी राहें जाती है तुझ तक
कहीं खड़ी भी होगी तू
मेरे ही इंतजार में
साल-दर-साल
चुनता हूँ इक नई राह
उम्मीद बस होती है यही
इस बार पा ही जाऊँगा तुझे
कमबख्त कितने ही मोड़ आए
कितनी ही राहें बदलीं
बस, इसी आस में
हर राह जाती है तुझ तक
कहीं कर रही होगी
तू, मेरा इंतजार
ऐसे ही
हर क्षण
तुझ में ही भटक रहा हूँ
तुझे ही पाने की चाह में
 

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