एक ठूंठ जब ताकता है आसमान
उसके गर्भ में होता है
दरख्त बनने का अरमान
ताकि फिर आबाद हो उसकी शाखें
तिनका-तिनका जुटा
कुछ पंछी फिर नीड़ बनाएं
फिर चोंच लड़े
फिर उम्मीदों के पंख
आसमान से ऊंची उड़ान भरें
कुछ मुसाफिर शाख तले
घड़ी भर आराम पाएं
कहीं किसी दिशा में
जब उठे तूफान
यही दरख्त
बांह चढ़ा
जड़ों को और गड़ा
रोक दे उसका रास्ता
पर, नहीं है आसान
हर वक्त
आंखों में एक ही सपने का पलना
फिर उसके लिए लगातार जुटे रहना
तप के लिए तपना भी होता है
भला कभी उम्मीदों की बारिश
आसानी से हो पाई है
तो सुन
मैं भी, हां मैं भी
उम्मीद से हूं
तू छू दे मुझे
और मैं
दरख्त बन जाऊं
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