इफरात में अब
कुछ भी नहीं मिलता
वो कॉफी, लॉंग ड्राईव
लंबी बातें, हाथों में तेरा हाथ
हर वक्त का साथ
सब कहीं छूट गया
बदकिस्मती की हद तो देखो
अकेलापन भी अब नसीब नहीं होता
लगता है कुछ नहीं है मेरा
हालत इतनी बदतर है ए-दोस्त
खुद को देखे ही अरसा बीत गया
सोचता हूं
एक दिन हर कतरे को फिर चुन लूं
आसमां में टंके तारों की तरह
मैं भी इन्हें दामन में अपने टांक दूं
खर्चूं तो
रखूं पाई-पाई का हिसाब
या फिर किसी बनिये की तरह
चढ़ा दूं ब्याज पर
जिस वक्त को दोनों हाथों से
जमकर लुटाया
काश, चंद लम्हे ही सही
कोई मुझे लौटा दे
काश, इफरात में न सही
कतरा-कतरा जीने की
कोई सहूलियत दे
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