दिन की शुरुआत होती है तुझीसे फिर धीरे-धीरे तू घुल जाती है मुझमें यूँ, शहद की मानिंद दिन भर जुबाँ पर मिठा स्वाद लिए रहता हूँ मैं भटकता फिर शाम होते-होते पता नहीं, कब, कैसे स्याह बदली बन छा जाती है मुझ पर फिर रात भर झड़ी का इंतजार प्यास है कि कमबख्त बुझती नहीं
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