हवा में तैरती शब्दों की नदी पता नहीं कौन से समुद्र में हो जाया करती है विलीन कौन सुनता है क्या कभी किसी को सुना भी गया है या कह देने भर का मसला है हर बात सुनी गई फिर भी अनसुनी ही रह गई हर तरफ बस शोर है फिर भी शब्द बेजुबान काश कि मौन मुखर हो सुन सके वे सारी बातें जो बयां होकर नहीं सुन पाया कोई
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