Monday, September 26, 2016

शब्द बेजुबान



हवा में तैरती शब्दों की नदी
पता नहीं कौन से समुद्र में
हो जाया करती है विलीन
कौन सुनता है
क्या कभी किसी को
सुना भी गया है
या कह देने भर का मसला है
हर बात सुनी गई
फिर भी अनसुनी ही रह गई
हर तरफ बस शोर है
फिर भी शब्द बेजुबान
काश कि मौन मुखर हो
सुन सके वे सारी बातें
जो बयां होकर नहीं सुन पाया कोई

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