Thursday, November 27, 2014

मेरी मजूरी


सूरज जब-जब खिलता है
मेरे दिल में भी
खिल आती है एक उम्मीद
घास पर उग आए
मोतियों की तरह
फूलों की महक
पंछियों की चहक की तरह
सर्द हवा में गुनगुनी धूप
नदी के कुनकुने पानी की तरह
तपती रातों के बाद
सुबह की रूमानी हवा की तरह
मां के आंचल में छुप
दूध पीते बच्चे की तरह
किसी अखबार में खुशनुमा
खबर की तरह
किसी मजदूर के
रोजगार की तरह
रोज उम्मीद बस जागती है
कुछ इसी तरह
और, ये कुछ नहीं
बस तेरी एक मुस्कान है
यही तो....
मेरी रोज की मजूरी
बस तेरी मुस्कान है

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