Monday, July 18, 2011

काँटा...




अच्छी-भली
चल रही थी जिंदगी
कहाँ से आ लगा
ये काँटा
अब रूह रहती है बैचेन
दिल में रहता दर्द बेशुमार
भुक्तभोगी कहते हैं
भले कर लो जतन हजार
ये है प्यार काँटा
पता नहीं चलता कब चुभा
पर आदमी काम का नहीं रहता

1 comment:

  1. इश्क ने निकम्मा कर दिया, वरना तुम भी आदमी थे काम के...?

    वैसे दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये खयाल भी बुरा नहीं है... :)

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