प्यास
Thursday, July 21, 2011
यादों का सिलसिला!
मुट्ठी खोली तो
हाथ कुछ न था
पर अंदर तक कुछ
गीला सा था
ये भी जानता था
कुछ नहीं मिलेगा
फिर भी उँगलियों को कर
सीलबंद, इतनी दूर चला
जहाँ खाली हाथ होने पर
भी यादों का सिलसिला मिला
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment