Sunday, July 3, 2011

मासूम ख्वाब!



सोने के बाद और
गहरी नींद के ठीक पहले
चादर से सरकते हुए
तकिये की झालर से
बालों की रहगुजर कर
आँखों में आ बसते हैं
अनगिनत मासूम ख्वाब
वहाँ नहीं होते
ध्ार्म, समाज, रिश्तों के बंध्ान
दुनिया से दूर इस दुनिया में
चलती है तो बस दिल की
देखता, सुनता, महसूसता
भी है तो बस दिल ही
और जब दिल की चलती है
तो पल में जी लेता हूँ जन्म-जन्मांतर

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