Thursday, November 27, 2014

मेरी मजूरी


सूरज जब-जब खिलता है
मेरे दिल में भी
खिल आती है एक उम्मीद
घास पर उग आए
मोतियों की तरह
फूलों की महक
पंछियों की चहक की तरह
सर्द हवा में गुनगुनी धूप
नदी के कुनकुने पानी की तरह
तपती रातों के बाद
सुबह की रूमानी हवा की तरह
मां के आंचल में छुप
दूध पीते बच्चे की तरह
किसी अखबार में खुशनुमा
खबर की तरह
किसी मजदूर के
रोजगार की तरह
रोज उम्मीद बस जागती है
कुछ इसी तरह
और, ये कुछ नहीं
बस तेरी एक मुस्कान है
यही तो....
मेरी रोज की मजूरी
बस तेरी मुस्कान है

Wednesday, November 26, 2014

तेरी-मेरी बात


तेरे मेरे दरमियां है जो बात
वो अब खुल जाने दे
जान जाने दे भेद सारे
यकिं है कोई न आएगा
जब बात होगी जख्मे मरहम की
ना तेरे दर्द की दवा कोई होगा
ना करेगा कोई बात मेरे जख्म की
फिर क्यों रहें हम पर्दानशीं
ये बात गर खुल भी जाए तो क्या
वहां गहरे हैं दर्द तमाम
लोग तो करते हैं
बस सौदे दिलों के
दर्द की बात ही तो है
फखत हमारे हिस्से
तो ए मेरी जान
वो बात अब खुल ही जाने दे

Tuesday, November 11, 2014

तुम


तुम होती हो तो भर देती हो
उस रिक्तता को
जो तुम्हारे न होने पर आ घेरती है मुझे
तुम न होती हो तो भर आती है
वह रिक्तता
जो तुम्हारे होने से भरी होती है मुझे
तुम्हारे होने, न होने
के बीच ही झुलती है रिक्तता
और मैं?
मैं इस रिक्तता में ही कहीं
करता रहता हूं इंतजार
तुम आओ
छा जाओ मुझ पर
ताकि मेरा हर कोना
भर जाए, महक जाए