Sunday, May 1, 2011

थाम ली जिंदगी !



जब मैंने उसे छूकर देखा
वह चौंक गई
उसे कुछ पराया सा स्पर्श लगा
झील सी आँखों को
उसने और गहरा, फैला दिया
कठोर चेहरा कर
फिर न छूने की मौन चेतावनी भी दी
इस बार मैंने उसे छूआ नहीं
बल्कि जकड़ लिया
वह छटपटाई, कसमसाई
और ध्ाकियाते हुए चली गई
शायद वह घबराई हुई थी
या फिर डरी हुई, या दोनों
मुझे अपने दुस्साहस पर
गुस्सा भी आया, शर्म भी
मैं मनाने, समझाने
पीछे-पीछे भागा
खुब चिल्लाया
दहाड़े मार रोया भी
मैं उसे समझाना चाहता था
ऐ जिंदगी...
मैं तुझे देखना, छूना चाहता हूँ
मौत आने तक तुझे ही
बस तुझे ही गले लगाना चाहता हूँ
पर हाथ से छूट चुकी थी वह
मैं बदहवास, पागलों सा
यहाँ-वहाँ दौड़ रहा था
तभी मेरी नींद उचट गई
...और मैंने खुद को
जिंदगी के आगोश में पाया
फिर मैंने जिंदगी को
बहुत मजबूती से जकड़ लिया!




 

1 comment:

  1. gar zindgi ka daaman chhuta, toh bas maut hi haath aaegi....
    magar zindgi ka daaman toh jo hai bass mere pyaar se hai...

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