खुद को खत्म करना
कोई मुश्किल काम नहीं
बुजदिलों का काम है ऐसी खुदकुशी
इसमें वह मजा भी कहाँ?
चंद लम्हों में ही काम तमाम
आत्मा जब छोड़ देगी शरीर
फिर बचेगा ही क्या?
तो भला इस मौत में
वह रस रहा ही कहाँ?
जिंदगी से खुशियाँ चाहने वाले
ढूँढ ही लेते हैं रोज मौत के तरीके
मैंने भी अपने लिए
की है तिल-तिल मौत मुकर्रर
पल-पल दरकता हूँ
अब मैं रोज मरता हूँ
बदहवासी, उद्वेलन, विचलन
हताशा, निराशा, गम
वहम, नशा, दर्द
पागलपन और दीवानापन
इस मौत में रचे-बसे हैं
इस खुदकुशी का एक नाम भी है
जिसे दुनियादार 'प्यार" कहते हैं
और मैं कहता हूँ इसे 'अफीम"
aur mein kehta hu use
ReplyDeleteAffim... umdaa..